Friday, May 23, 2008

मौत ने चुना मेरा घर

मौत एक फुल स्टॉप की तरह आती है। सब कुछ वहीं का वहीं थम जाता है। इस बार ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ। हमारे घर में एक फूल सी बच्ची थी, पारुल। सिर्फ़ पच्चीस साल की। साल भर पहले ही शादी हुई थी। ग्रेटर नोएडा में एक हादसे में अचानक वह हमसे छीन गयी। रिश्ते में मेरी चचेरी बहन पारुल की मौत ने जैसे हमारे परिवार में सबकुछ एक झटके से रोक दिया। बासो की योजनाएं भी जहाँ की तहां थम गयीं। उसके पार्थिव शरीर को लेकर अपने गृहनगर गया। जाने से पहले लिखा एक अधूरा पोस्ट जस का तस पेश है, सिर्फ़ ये बताने के लिए कि इस जीवन में योजनाओं का मतलब कुछ नहीं होता :
३ मई को जब बासो की पहली लाइब्रेरी शुरू हुई थी तो हमने लक्ष्य बनाया था कि एक महीने में एक और लाइब्रेरी शुरू करेंगे और साल भर में पचास लाइब्रेरी होंगी। लेकिन पहली लाइब्रेरी शुरू होने के हफ्ते भर के भीतर ही दूसरी लाइब्रेरी शुरू होने की तैयारी हो गयी। ये लाइब्रेरी इस रविवार यानी १८ मई को सेक्टर ११ के धवलगिरी अपार्टमेंट में शुरू होगी। वहाँ का RWA बहुत उत्साह में है और बच्चों को गरमी की छुट्टियों का तोहफा देने को बेकरार है। इधर सेक्टर ५६ नोएडा का RWA भी पूरे जोश से हमारे साथ जुट गया है। हमारी लाइब्रेरी अब पार्क से कम्यूनिटी सेंटर में शिफ्ट हो गयी है। बच्चों के लिए बहुत सी कुर्सियाँ भी मिल गयी हैं और किताबें रखने के लिए अलमारी भी। RWA के महासचिव एस के नंदा और मेरे पुराने वाकिफ नोएडा अथारिटी के अधिकारी आर के शर्मा का ज़बरदस्त सहयोग और उत्साह ही है कि महज सात दिनों में ही लाइब्रेरी को सारी सुविधाएँ मिल गयीं। वादा ये भी है कि दो महीने के भीतर इस लाइब्रेरी को एक कमरा भी मिल जाएगा। पी सी जैन साहब और उनकी पत्नी का योगदान भी सराहना योग्य है। दूसरों की मदद करने कि ऐसी तड़प ऐसे नौजवान जोड़े में मिलनी मुश्किल है। दोनों में परोपकार के लिए एक जैसी तड़प है। धवलगिरी अपार्टमेंट के RWA अध्यक्ष शांतनु मित्तल बहुत पुराने दोस्त हैं। उन्होंने बासो के संकल्प को बहुत उत्साह से लिया है। RWA के उपाध्यक्ष सुनील कुमार नाग जल्दी से जल्दी अपने अपार्टमेंट में बासो लाइब्रेरी शुरू करने की मुहिम में जुट गए हैं। बासो की शुरुआत में हम छः लोगों ने एक एक हजार रुपये हर महीन देकर इस अभियान को चलाने का निश्चय किया था, लेकिन एक साथी कुछ वक्त के लिए सहयोग नहीं दे पायेंगे। मतलब कुछ दिन थोडी और किफायत से काम चलाना होगा।

1 comment:

Anonymous said...

एक दिन कुछ यों हुआ,
हमको तारों ने छुआ.
जैसे शायर की झिझक.
जैसे अम्मा की दुआ
तारा बोला यार तुम.
काफ़ी हद तक नेक हो ,
सिर्फ़ जागते ही नहीं,
वरना हममें एक हो.
वो बेचारा एक तारा,
जानता क्या सब कहानी?
उसने जो भी सुना था,
दोस्तों की ही जुबानी.
मैं उसे क्या बताता,
कैसे ख़ुद से भी छिपाता
सूरज हुआ नाराज़ है,
रौशनी ही नहीं देता
इतने बड़ी आकाश गंगा
में अकेला नाव खेता.
और ढोता दंश उन उत्तरों के,
जो मैंने ख़ुद रचे थे.
और उत्तर खो गए थे,
प्रश्न बस बाकी बचे थे.
मित्र, यदि तुम खोज पाओ
मेरे अलक्षित उत्तरों को,
पत्र तो तुम क्या लिखोगे,
मेल कर देना,
मेरी दुआ लेना..

आलोक तोमर