Wednesday, May 21, 2008

संध्या

एक छोटी सी, प्यारी सी लड़की का नाम है संध्या. छोटी सी पर जोश से लबालब भरी हुई लड़की. वो शायद एक उम्र होती है जब हम वैसे ही होते हैं जैसे हीरो को हम अपने मन में रचते हैं. उस वक्त हममें कुछ भी ख़राब नहीं होता. संध्या उसी उम्र से गुज़र रही है. उससे NDTV में मुलाकात हुई जहाँ वो काम करती है।

अपना कुछ सबसे प्यारा उठाकर किसी को दे देने में गज़ब सुख होता है लेकिन इसका अनुभव कम लोग ही कर पाते हैं. संध्या ने जब इस सुख को समझा तो वो बासो लाइब्रेरी के लिए एक ऐसा खजाना उठा लाई जो उसने बचपन से लेकर अब तक बहुत एहेतियात से संजोया था. ये थे नेशनल जेओग्रफिक के २१ अंक. ये संकलन उसने कभी अपने सबसे प्यारे दोस्तों को भी छूने नहीं दिया।
अपना ऐसा कुछ सबसे प्यारा ऐसे किसी को दे देना जिसे हम बिल्कुल न जानते हों. यही नहीं वो भी हमें न जानता हो और साथ ही उसे ये भी न पता हो की ये उसे दिया किसने है. इस सुख का एहसास वही कर सकता है जो निस्वार्थ की नर्म घास पर बिछी इस अद्भुत अनुभव की ओस पर सुबह सुबह नंगे पाँव चला हो, संध्या की तरह।

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