Sunday, May 4, 2008

चिट्ठी आयी है


ये हैं कमेंट्स जो जवाब में आए हैं। दरख्वास्त ये है की अगर anonymous ऑप्शन भी लें तो भी पोस्ट के आख़िर में अपना नाम ज़रूर लिख दें। सुविधा के लिए देवनागरी में ये चिट्ठी पेश है।

लौ दे उठे वो हर्फ़-ऐ-तलब सोच रहे हैं,
क्या लिखिए सर-ऐ-दामन-ऐ-शब सोच रहे है।

क्या जानिए मंजिल है कहाँ जाते हैं किस सिम्र्त,
भटकी हुई इस भीड़ में सब सोच रहे हैं।

भीगी हुई एक शाम की दहलीज़ पे बैठे ,
हम दिल के धड़कने का सबब सोच रहे हैं।

इस लहर के पीछे भी रवां हैं नई लहरें,
पहले नहीं सोचा था जो अब सोच रहे हैं।

हम उभरे भी डूबे भी सियाही के भंवर में,
हम सोये नहीं शब-हमा-शब सोच रहे हैं।



[siyaahii = darkness; bha.Nvar = whirlpool][shab-hamaa-shab = night after night]

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