बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ
याद आती है चौका-बासन
चिमटा फुकनी जैसी माँ
बान की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे आधी सोयी-आधी जगी
थकी दुपहरी जैसी माँ
चिड़ियों की चहकार से गूंजे
राधा-मोहन..अली-अली
मुर्गे की आवाज़ पे खुलती
घर की कुण्डी जैसी माँ
माँ-बेटी- बहन-पड़ोसन
थोडी-थोडी सी सब में
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी माँ
बाँट के अपना चेहरा...माथा
...आंखें जाने कहाँ गई
फटे-पुराने इक एल्बम में
चंचल लड़की जैसी माँ.
Sunday, May 11, 2008
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2 comments:
बहुत ही अच्छा लिखा है आपने ।
Dear Dr. Praveen, saw your profile. It's great to know "man with a mission." The ghazal, however was written by Nida Fazli.
regards
BASO
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